|
स
स इत्क्षेति सुधित:
स इत्तमोऽवयनं
स इद् राजा प्रति
क्षे ति अस्य
सखा ह यत्र
स गोरश्वस्य
स चेतयन् मनुषो
स जाते भिर्वृत्रहा
स जायत प्रथम:
सत: सत: प्रतिमानं
स तू नो अग्नि:
सतो वन्धुमसति
सत्या सप्येभि:
सत्रासाहं वरेण्यं
सनत्
क्षेत्रम
सखिभि:
सना ता काचिद्
सनाद् दिवं
सनेम मित्रावरुणा
सनेमि सख्यं
स नो नृणां नृतमो
स मातरिश्वा
समान ऊर्दे
समीं पणेरजति
समुद्रज्येष्ठा:
समुद्रादूर्मिर्मधुमाँ
समुद्रार्था या:
सम्यक् स्रवन्ति
सरण्युभि: फलिगम्
ससानात्याँ उत
स सुष्टुभा स स्तुभा |
मं
IV.
VI.
IV.
IV.
III.
VIII.
IV.
III.
IV.
III.
IV.
X.
VII.
III.
I.
II.
I.
VII.
I.
I.
I.
VII.
V.
VII.
IV.
VII.
IV.
I.
III.
I. |
सू.
50.
21.
50.
1.
39.
32.
1.
31.
1.
31.
1.
129.
75.
34.
100.
24.
62.
52.
62.
77.
96.
76.
34.
49.
58.
49.
58.
62.
34.
62. |
मं
8
3
6
9
5
232,
5
9
11
11.
8
10
4
7
182,
8.
18
5
8
1
9
4
4
5
7
1
1
2
6
4
9
4 |
पृ.सं
403
303
403
267
212
254
198
267
285
268
284
267
307
174,
193
299
200
238
240
250
240
357
291
260
298
157
148,
393
157
151,
395
211,
239
300
239,
403 |
|
स सुस्टुभा स
ऋक्वता
सहस्रसामाग्निवेश
सहस्त्रसावे
स हि क्रतु: समर्यः
स हि रत्नानि दाशुषे
सं जानाना उप
संपश्यमाना अमदन्नभि
सं यज्जनौ
सं वाज्यर्वा स ऋषि:
सं वो मदासो
साकं
सूर्य
सिन्धोरिव प्राध्वने
सुकर्माण:
सुरुचो
सुगस्ते अग्न
सुरूपकृत्नुमूतये
अङ्गिरसामुचथा
सों अङ्गिरोभि:
स्तीर्णा अस्य
स्तुतासो नो मरुतो
स्वध्वरासो
स्वर्यद्वेदि
सुदृशीकं
स्वादुषंसद:
स्वाधीभिऋrक्वभि:
स्वाध्यो दिव आ
ह
हंसाविव
हंसासो ये वां
हविर्हविष्मो
महि
हिरण्यदन्तम् |
मं
IV.
V.
III.
I.
V.
I.
III.
V.
IV.
I.
VI.
IV.
IV.
VII.
I.
II.
I.
III.
I.
IV.
IV.
VI.
VI.
I.
..
V.
IV.
IX.
V. |
सू
50.
34.
53.
77.
83.
72.
31.
34.
36.
20.
30.
58.
2.
42.
4.
20.
100.
1.
171.
45.
16.
75.
32.
72.
78.
45.
83.
2. |
मं.
5
9
7
3
3
5
10
8
6
5
5
7
17
2
1
5
4
7
3
5
4
9
2
8
265,
1
5
5
3
. |
पृ.सं.
194,
226
298
243
356
384
288
285
298
431
425
207
151,
395
274
249
172,
334
244
226
161
345
415,
422
403
224
245
200
289
125
414;
421
442
192 |